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।1।
जो मन मे बज रही मेरे ,वो अनुपम भैरवी हो तुम,
।1।
जो मन मे बज रही मेरे ,वो अनुपम भैरवी हो तुम,
सभी कुछ है गलत मेरे लिए, अब बस सही हो तुम,
जिधर कह दो उधर से सूर्य होगा अब उदय मेरा,
जहाँ मैं लाभ में हर दम , वो जीवन की बही हो तुम।
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।2।
मेरी आकाशगंगा के प्रखरतम सूर्य हो तुम ही
सजी है धड़कनों की ताल जिससे तूर्य हो तुम ही
भटकती फिर रही थी मैं यहाँ अभिशप्त पाहन सी;
उजाला भर दिया मुझमें सुघड़ बैदूर्य हो तुम ही
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।3।
मेरे भावों के उलझे बाग़ के हमदर्द माली तुम
मेरी होली के पक्के रंग और मेरी दिवाली तुम
तुम्हीं से बज रही है ताल धड़कन की कहरवे सी
तुम्हीं से राग की अनुगूँज हो मेरी कवाली तुम
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।2।
मेरी आकाशगंगा के प्रखरतम सूर्य हो तुम ही
सजी है धड़कनों की ताल जिससे तूर्य हो तुम ही
भटकती फिर रही थी मैं यहाँ अभिशप्त पाहन सी;
उजाला भर दिया मुझमें सुघड़ बैदूर्य हो तुम ही
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।3।
मेरे भावों के उलझे बाग़ के हमदर्द माली तुम
मेरी होली के पक्के रंग और मेरी दिवाली तुम
तुम्हीं से बज रही है ताल धड़कन की कहरवे सी
तुम्हीं से राग की अनुगूँज हो मेरी कवाली तुम

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