मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

नज़्म: खुद से मिल गए हैं




बेनूर थे बहुत हम , 
तुमसे ही नूर आया
तन्हाइयों में तुमसे 
हमको सुकून आया
सब कुछ था खाली खाली , 
कुछ भी नहीं था भाता
जब तू नहीं था सुन ले , 
कुछ भी नहीं था आता
तुझसे ही छंद सीखे 
तुझसे ही काव्य जाना
तुझसे मिली थी जब मैं
तब ही मिले निराला
कामायनी पढ़ी जब
तब थी प्रलय सी आयी
तूने ही सिखाया तब
उषा तिमिर से आई
ये रात भी बीतेगी
दिनमान भी चमकेगा
तू भी बनेगा ध्रुव और
आकाश में चमकेगा
दिनकर के रश्मिरथ चढ़
जीवन को संभाला था
तुझको समझ के गीता
हर ढंग में ढाला था
तुलसी कबीर, मीरा
अपने से तब लगे थे
जब तूने ये कहा था
वो अपने सब सगे थे।
तुम जानते हो नहीं हो
तुम स्वांस स्वांस में हो
धड़कन की हर धड़क में
अरु प्राण प्राण में हो
तन्हाइयों में हमने 
क्या क्या नहीं किया है
तुझपे मरे है बरसों
बरसों तुझे जिया है
तुमको नहीं पता है
क्या आज हो गए हैं
दुनिया से बेकली है 
तुझमें ही खो गए हैं
तुम जानते हो पहले 
दुनिया में घूमते थे ,
खुद भी न जानते थे
हम किसको ढूँढते थे
तुम क्या मिले कि हमको, 
भगवान मिल गए हैं
ये है प्रथम की हमको
हम खुद ही मिल गए हैं।
ये है प्रथम की हमको
हम खुद ही मिल गए हैं।




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