मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

गीत: हम निरंतर मर रहे हैं






क्यों परीक्षा पर परीक्षा ले रहे हो तुम हमारी
क्यों नहीं तुम देखते हो हम निरंतर मर रहे हैं

आज से जाना नहीं , तुमको जिया है हमने बरसों
ढूँढते थे हम तुम्हें जब भी खिली खेतों में सरसों
शीत में तुम धूप बन कर साथ चलते थे हमारे
और नवल बासन्त में जब कुछ नहीं था,तुम सहारे
बस तुम्हारे साथ से जीवन के पतझड़ हर रहे है 

क्यों नहीं तुम देखते हो, हम निरंतर मर रहे हैं।

स्नेह है, आसक्ति इसको मत समझना प्रिय मेरे
भक्ति है , व्यक्तित्व से, ना व्यक्तिगत कुछ स्वार्थ मेरे 
साथ होते हो तो जीवन हो ठगा सा देखता है
और नहीं तो फिर स्वयं यम प्राण मेरे खेंचता है
जान लो ये बस तुम्ही से घट नयन के भर रहे हैं

क्यों नहीं तुम देखते हो, हम निरंतर मर रहे हैं।

जोड़ते हो राम से यह कह, रगों में है तुम्हारी
तोड़ते फिर उस तरह , ज्यों हो विलग सीता थी हारी
क्यों नहीं तुम सत्य को स्वीकारते हो राम मेरे
क्यों नहीं आते पलट कर , हे प्रभु तुम धाम मेरे
आज मरघट बैठ शिव के साथ हम फिर तर रहे हैं

क्यों नहीं तुम देखते हो, हम निरंतर मर रहे हैं।
क्यों परीक्षा पर परीक्षा ले रहे हो तुम हमारी
क्यों नहीं तुम देखते हो, हम निरंतर मर रहे हैं।



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