मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

लखन गीत







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पैरों के नूपुर चीन्हने वाला माता को समझाता है
तुम कहीं नहीं जाना मैया ये कह के परिधि बनाता है

देखा न कभी मुख माता का, चरणों मे ही नित ध्यान रहा
बस एक सुरक्षा की ख़ातिर वर्षों तक शर संधान रहा
ना सोया ना खाया जिसने वो कंद मूल बिन लाता है

तुम कहीं नहीं जाना मैया ये कह के परिधि बनाता है।

उस पर्णकुटी का रखवाला, जो शेष विशेष है जन्मों से
जो राम की सेवा में नित रत, जो है महेश का कर्मों से
वो स्वयं भारती सीता की आज्ञा पर सब कर जाता है

तुम कहीं नहीं जाना मैया ये कह के परिधि बनाता है।

जब पार करी ,लक्ष्मण रेखा ,सीता से सब कुछ छूट गया
प्रभु राम ढूँढते रहे उन्हें, विह्वल होकर मन टूट गया
जो सीख  मिली मानस से उसको मान तेरा क्या जाता है

तुम कहीं नहीं जाना मैया ये कह के परिधि बनाता है

जब विषम काल आये तो बस नियमों का तुम निर्वाह करो
खुद सत्य मार्ग पर चलो और लोगों की भी परवाह करो
विपदाएं भी भय खाती हैं, जब मनुज एक हो जाता है

तुम कहीं नहीं जाना मैया ये कह के परिधि बनाता है
पैरों के नूपुर चीन्हने वाला माता को समझाता है।


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