मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 5 अक्टूबर 2019

गीत: खो गयी पहचान मेरी



तुम गए क्या खो गया सब ,खो गयी पहचान मेरी।

साथ थे तुम तो मुझे पहचान देते थे हमारी
नाम लाखों देके मुझ पे तुम हुए जाते थे वारी
में कभी गुड़िया कभी गुड्डन कभी बिट्टन बनी थी
और मेरे तात तुमने ,परियों से तुलना करी थी
तुम मुझे सर का मुकुट अपना बताते थे सभी को
और कोयल कह के भी अक्सर बुलाते थे मुझी को
बस तुम्हारे ये दिए कुछ नाम थे पहचान मेरी

तुम गए क्या खो गया सब ,खो गयी पहचान मेरी।

जब वो पहली बार माँ की ओढ़नी मैने थी ओढ़ी
सीने से मुझको लगा कर रोई थी तब आँख थोड़ी
पोछ कर आंसू कहा था तुमने तू मेरी अली है
जाने इतनी तीव्रता से किस तरह तू बढ़ रही है
तू ना होती तो हमारे घर में उजियारा ना होता
तू ना होती तो हमें कोई कभी प्यारा ना होता
बस तुम्हारा प्रेम ही था बन गया पहचान मेरी

तुम गए क्या खो गया सब ,खो गयी पहचान मेरी।

याद है मुझको अभी भी में बहुत तुमसे लड़ी थी
गाय कह  कर क्यों बुलाया, मुझमे ऐसी क्या कमी थी
तब बिठा कर गोद में तुमने कहा था तू भली है
मेरे घर में तू जब आयी दूध की नदियां बही हैं
तेरे आने से उजाला और सुख समृद्धि आयी
तू नही थी कुछ नहीं था तू हंसी उल्लास लायी
बस तुम्हारे वो विशेषण बन गए पहचान मेरी

तुम गए क्या खो गया सब, खो गयी पहचान मेरी।

मैं ही रंगों की थी होली मैं ही दीपों की दिवाली
मैं सेवइयां ईद की थी मैं ही तेरी पूजा थाली
तुम मुझे जब चाँद दिखलाते थे तो ये बोलते थे
चाँद से ज़्यादा वज़न देकर मुझे तुम तौलते थे
सूर्य की आभा हमीं थे और हम ही चाँद तारे
सुख सभी अपने हमें दे, दुख लिए थे मेरे सारे
बस तुम्हारे त्याग सारे बन गए पहचान मेरी

तुम गए क्या खो गया सब, खो गयी पहचान मेरी।

लौट आओ तात तुम बिन हाँथ खाली हैं हमारे
तुम थे जब तक साथ पूरे स्वप्न होते थे हमारे
जो भी चाहा बिन कहे ही तुमने मुझको दे दिया था
और मैं उपहार तुमको ईश का ये कह दिया था
भोग का पहला निवाला तुम मुझे ही थे खिलाते
तुम मुझे शक्ति थे कहते और स्वधा कह कर बुलाते
बस तेरा विश्वास मुझ पर बन गया पहचान मेरी

तुम गए क्या खो गया सब, खो गयी पहचान मेरी।


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