जब जब मन ने पीढ़ा झेली
अंतस ने यह उच्चारा है
माँ केवल तुम्हें पुकारा है
माँ केवल तुम्हें पुकारा है।
सावन की बूंदों की रिमझिम
झूलों का छूना आसमान
घर का घर सा ना रह जाना
बस लगना जैसे एक मकान
तू ही तो प्राण सरीखी माँ
तुझको ही सदा निहारा है
जब जब मन ने पीढ़ा झेली
अंतस ने यह उच्चारा है
माँ केवल तुम्हें पुकारा है।
जब भावनाओं की गठरी को
खोला तो खाली पाया है
तुम बिन अम्मा सब कुछ है बस
ममता की कहीं न छाया है
सुन विह्वल मन के क्रंदन का
तू ही बस एक सहारा है
जब जब मन ने पीढ़ा झेली
अंतस ने यह उच्चारा है
माँ केवल तुम्हें पुकारा है।
अन्तस् की ज्योति है तू माँ
जिससे मैं प्रकाशित होती हूँ
तू है वो मलयानिल अम्मा
जिससे मैं सुवासित होती हूँ
जब भी मंझधार फंसी हूँ मैं
तू बन कर आई किनारा है।
जब जब मन ने पीढ़ा झेली
अंतस ने यह उच्चारा है
माँ केवल तुम्हें पुकारा है।

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