मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

छन्दमुक्त :जाल



देखी है मैने
दीवारों पर 
लगे जालों के 
जंजालों के पीछे
छिपे 
मकड़ों की परछाईयाँ
कुछ मृत
जालों को बिनते बिनते
उसमें ही उलझ कर
सो गए
कुछ जीवित 
निरंतर अपने लिए 
जाले पर जाले बिनते
इस असत्य में खो गए,
और कुछ
जाले के पीछे से
अनिमेष 
मौन
नैनों से निहारते।

शायद उनके 
अनकहे शब्दों में
जाले से 
निकलने की
प्यास थी
और इस क्षणभंगुर
संसार को छोड़
उस जगत नियंता से 
मिलने की आस थी।

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