मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

छन्दमुक्त: कर्ज़ और फ़र्ज़

अभी अभी 
बाबा ने मुझको
माँ के पास 
सुरक्षित रखने के 
वादे संग छोड़ा था,
अभी अभी माँ ने 
स्वीकारा था मुझको
अभी अभी बस
अपने मन संग जोड़ा था
मैने माँ के गर्भ 
साँस ली थी पहली
मेरी धड़कन ने माँ को 
झझकोरा था
कहीं न जन्में मेरे घर 
जानकी पुनः
इस ख्याल ने 
माँ को फिर से 
तोड़ा था।
बरसों से 
यह ताने 
सुनती आई माँ
दो लड़कियाँ जन्म दे 
उसने पाप किया
जैसे सारी 
मेरी माँ की 
गलती हो
और उसने परिवार साथ 
कुछ घात किया।
बाबा भी दादी की बातों से सहमत
बार बार हो पुत्र मांगते थे प्रभु से
और पुत्र की किलकारी गूँजे आँगन
यही एक इच्छा थी उनकी बस रघु से,
पहुँच गए वे आज जानने
हूँ मैं कौन
और दिए पैसे जानने 
पुत्र या और
सुन, आघात !
पिता असन्तुलित हुए मेरे
हाय! नाद यह हिस्से 
फिर से आए मेरे
तुम हटाओ इसको 
ये जन्म नहीं लेगी
घर पर फिर एक बोझ 
तू जन्म नहीं देगी।
पर डॉक्टर ने बोला 
माँ मर जाएगी
यदि ये बेटी गर्भ में मारी जाएगी
यह सुन बाबा ने माँ को धिक्कारा था 
जन्म मेरा हो लेकिन ये स्वीकारा था

आज धरा की खुशबू सूंघी थी मैने
आज खुला आकाश निहारा था
आज प्रथम माँ का स्पर्श किया मैने
और बाबा की गोद को भी स्वीकारा था
लगा स्नेह जागेगा देख मेरी सूरत
जब बाबा ने नर्स को धन पकड़ाया था
और मुझे लपेट कपड़े में बाबा ने 
कूड़े के एक ढेर में जा दफनाया था

साँस मेरी अटकी थी मेरे ही अंदर
लगा क्षणिक जीवन था सब अंधियारा था
मैं चिल्ला कर रोई थी अम्मा अम्मा
तब एक किन्नर ने आ मुझे निकाला था

बरसों बीत गए हैं इन सब बातों को
पर आँखों मे अब भी एक अंधियारा है
माँ की याद सताती है मुझको अब भी
लगता है अम्मा ने मुझे पुकारा है

आज तीस बरसों की अथक उड़ान बाद
मैं एक डॉक्टर हूँ
जीवन देने वाली
और मेरे क्लीनिक में मेरी अम्मा संग
आये हैं बाबा लेकर के एक बीमारी
आज उन्हें जीवन देने की बारी है
जिसने एक रात मुझे कचरे में डाला था
वो कर्ज भले ना चुका सकें हो मेरा पर
मुझको तो कर्ज 
आज चुकाना था।

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