मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

छंद मुक्तदेव की आवश्यकता





मैं उसके 
आने से पहले
इतने ख्वाब 
सजा लेती हूँ
कि उसके 
बिना मिले 
जाने के बाद
उन टूटे ख्वाबों को
बटोरने में
मैं स्वयं को
ही खो देती हूँ।
और फिर बटोरती हूँ
अपने ही टुकड़े
और उन्हें जोड़ 
फिर खड़ी होती हूँ
ये सोच 
कि कल अगर उसे
मेरी ज़रूरत पड़ी
तो मैं उसे टूटा हुआ
अस्तित्व कैसे 
समर्पित करूंगी।
देव को खंडित 
कुछ भी
अर्पित कहाँ होता है।
पर यह भूल जाती हूँ
कि 
देव को किसी की 
आवश्यकता भी 
कहाँ पड़ती है।

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