मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

गज़ल: आज़मा कर देख लो

एक कोशिश




तुम हमें फिर लिटमसों के बीच लाकर देख लो
अम्ल हैं या छार हैं हम आज़माकर देख लो

मेरा सादापन तुम्हें जब रास आता ही नहीं
फिर जो चाहो तुम मुझे वैसा बनाकर देख लो

बुतपरस्ती में लगे हो बुत में दिल होता नहीं
आज इन्सानों से तुम दिल को लगाकर देख लो

एक इक अक्षर में उभरेगा मेरा चेहरा जनाब
जानने को सच मेरे सब ख़त जलाकर देख लो

मैं कोई चेहरा नहीं हूं, दिल हूँ , दुख भी जाऊंगा
गर यकीं तुमको नहीं तो फिर दुखा कर देख लो।

हम भले सुनते नहीं है दीन दुनिया की दलील,
पर तुम्हें सुनते हैं बिन बोले, बुला कर देख लो।


शेष तीनों उंगलियां फिर प्रश्न सी उठ जाएंगी
एक उँगली आप बस हम पर उठाकर देख लो।

लूटने जब आ गया अपना कोई बन गजनबी
बचना मुश्किल है भले पहरे लगा कर देख लो।

उड़ ही जायेंगे विहग, चाहे विषम हालात हों
हौसलों से हैं उड़ाने पर कतर कर देख लो।





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