गीत
पिंजर तोड़ निकल जायेगी, मैना अपनी राह में
तू बैठा ही रह जायेगा , यहीं कहीं अभिमान में।
चार उठाने वाले होंगे , एक जलाने वाले सँग
कुछ सच्चे रंग वाले होंगे, कुछ के होंगे झूठे रँग
फूंक रहे होंगे सब रिश्ते बैठ वहीं शमशान में।
भले सिकंदर नाम तुम्हारा, खाली कर ही जाएगा
पंच तत्व का मटका खाली हो ,सागर ही जाएगा
और आत्मा अकुलायेगी मिलने को भगवान में।
नयन बंद कर, स्वांस थाम ले, और तरल खुद को कर ले
ज्ञान चक्र पर संयत हो जा, और सरल खुद को कर ले
मोक्ष द्वार बस तभी मिलेगा, जब बैठेगा ध्यान में।
गीता ने जो ज्ञान दिया , वो आत्मसात कर लेना है
अर्जुन सा साधक बन तुझको, लक्ष्य आप वर लेना है।
कर्मप्रधान बना जो जीवन, सुख ही सुख वरदान में।
पिंजर तोड़ निकल जायेगी, मैना अपनी राह में
तू बैठा ही रह जायेगा , यहीं कहीं अभिमान में।
स्वधा रवींद्र "उत्कर्षिता"

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