मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 11 सितंबर 2019

छंद मुक्त:-पिछले बीस साल

पिछले कुछ 
बीस सालों में
सुनी है तुमने 
मेरी बकबक।
याद है तुम्हें 
कहते थे तुम
सुबह से रात तक
बजती रहती थी मैं
तुमसे 
जाने क्या क्या 
कह देना चाहती थी
अपना उल्लास, उत्साह,
अपनी व्यग्रता
अपनी कुंठा
अपने सभी रहस्य
इसीक्रम में भूल जाती थी
ये सोचना
की क्या तुम 
समझ रहे हो 
मेरी भावनाएं।
तुम सुन रहे होते थे
मेरी असंख्य बातें
अपने सौ ज़रूरी काम निपटाते हुए
बीच बीच मे हूँ कह
सुने जाने का भरम पैदा करते।
आज कुछ बीस बरसों बाद
ये एहसास हुआ
तुमने तो कुछ सुना ही नहीं
वो जो मैंने चीख चीख कर
तुमसे कहा था।
अब ऊर्जा नहीं
कि तुम्हें समझा सकूँ 
अपनी वेदनाएं।
चिंता मत करो 
बोलना बन्द नहीं करूंगी मैं
बोलती रहूंगी तुमसे वैसे ही
बस भाषा बदल जाएगी
अब तुम्हें 
समझना होगा
मौन 
जिसमें मैं दिन के चारों पहर 
करूंगी
तुमसे बात।

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