मेरी किसी से
कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
पर मैं तुम्हारे जीवन मे
"प्रथम रहना चाहती हूँ"
हाँ मैं बस तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ|
मुझे नहीं पता कि
कैसे अभिव्यक्त करूं स्वयं को
बस इतना पता है
बहुत कुछ है
जो मैं तुमसे कह देना चाहती हूं
हाँ मैं बस तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ|
तुम कहीं भी होते
मेरी नज़रें तुम्हें तलाश ही लेती
तुम कहीं भी गुनगुनाते
मेरे कर्ण पटल पर अंकित हो ही जाते
तुम रंग बिखेरते तो मैं उन रंगों में
रंग ही जाती
तुम बोलते तो शब्द सार्थक होते
और तुम मौन होते तो ध्यान सार्थक होते
तुम प्रश्नों का उत्तर दे देते
तो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाती मैं
और जब कभी तुम्हारे उत्तरों की प्रतीक्षा में
दिन रात गुजारने पड़ते
तो जाने कितनी बार पराजित हो
खुद को अपने ही प्रश्न पूछने पर
कोसती मैं
पर कैसे तुम्हें जतलायें बतलायें
कि तुम कौन हो मेरे,
सांसारिक रिश्ते से
परे है मेरा तुमसे रिश्ता
पर तुम जाने
समझोगे भी या नहीं
इसीलिए कह रही हूँ
बहुत कुछ है जो मैं तुम्हे
समझा देना चाहती हूं
हाँ मैं बस
तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ|
मेरी किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
पर मैं
बस तुम्हारे जीवन मे
प्रथम रहना चाहती हूँ।
वो मुझसे रोज़ कहती थी
एक अनोखे रिश्ते के बारे में
कहती थी वो मेरा सोल मेट है
समझ नही पा रही थी
कौन से रिश्ता है ये
जाने कितने
शब्द कोष तलाशे थे
इस खोज में कि कहीं
मेरा तुम्हारा रिश्ता यही तो नहीं
पर जितना तलाशती
उतना और
उलझ जाती थी मैं
तुझसे
दूर होकर भी
खुद को तेरे पास
पाती थी मैं
नहीं मिलते थे
गुण
किसी भी
परिभाषित रिश्ते के
मेरे तुम्हारे रिश्ते से
जहां मैं
खुद में बस
तुझे देख पाती थी
सुखी होती तो तुम दिखते
दुःखी होती तो तुम दिखते
आंखों की सीमा
ही उतनी हो गयी थी मेरी
कि तुम्हारे अतिरिक्त
कुछ भी नहीं दिखता था मुझे
खुद में तुम
उसमें तुम
और तुममे भी
तुम ही नज़र आते थे मुझे
मुझे समझ नहीं आता था
किसलिए इतना भाते थे तुम मुझे
ये जो
पारलौकिक सा
रिश्ता था ना
मेरा तुम्हारे साथ
ये तुम्हे भी
जतला देना चाहती हूँ
हाँ मैं बस
तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ|
मेरी किसी से
कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
पर मैं
बस तुम्हारे जीवन मे
प्रथम रहना चाहती हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं