मैंने तो प्रेम किया था
पर उसने
हाँ उसने
साजिश ही कि थी
उस दिन
जब पहली बार उसने मुझे
सोनपरी कह के बुलाया था।
हाँ उसने
साजिश ही की थी
जब उसने कहा था
"बड़ा स्वाद है
तुम्हारे हाँथ के खाने में
जी करता है तुम्हारे
हाँथ चूम लूँ।"
हाँ उसने
साजिश ही कि थी
जब उसने कहा था
की बड़ी सुंदर लगती हो तुम
जब साड़ी पहन कर
सिंदूर बिंदी लगा
पायल बजाती
मेरे कमरे में दाखिल होती हो तुम।
हाँ उसने
साजिश ही की थी उसने
जब मुझे दया की मूर्ति
त्याग की प्रतिमा
कहते हुए कहा था
देख लेना तुम मेरे लिए
दुनिया की
सबसे सुंदर नारी हो।
आज समझ पायी हूँ
वर्षों बाद
जब वो बात बात पर
कहता है
कुछ भी ठीक नहीं बनता तुमसे
कभी नमक ज़्यादा डालती हो
कभी चीनी ज़्यादा कर देती हो
इससे अच्छा तो
मैं खुद ही बना लूँ
स्वयं के लिए
दो जून के खाना
पर वही खाना खा
पूरी दुनिया
चटकारे लेती है।
कल उसे
जिस साड़ी में मैं
परी सी नज़र आती थी
आज उसी में आउटडेटेड
दिखती हूँ
जिस पायल की आवाज़
सबसे मधुर लगती थी
आज वही चुभती है तुम्हे
मेरा सृंगार
उसे चेहरे पे की गई
लीपा पोती लगता है
आज मैं उसे सादी ही
अच्छी लगती हूँ
जिसमे मैं
किसी को नहीं भाती।
कल मैं दुनिया की
सबसे ममतामयी माँ
बनने के गुणों से भरी हुई थी
और आज कहते हो
कि वो मुझ पर गया है
तुम्हारा कोई गुण नही है उसमें
जैसा है
मेरे कारण है
संस्कारों की मूर्ति
तुम्हारे लिए कैसे
संस्कारों को ना मानने वाली
बन गयी।
मेरा प्रेम आज भी
वैसा ही है
स्वीकार रहीं हूँ
तुम्हारी सारी अवहेलनायें
उसी भाव के साथ
और आज भी वैसी ही हैं
तुम्हारी साजिशें।
जो खत्म ही नहीं होती।

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