मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 23 सितंबर 2019

गीत: तुम क्या जानो।


कल से तेरी राहों में हम दिए जलाये बैठे थे,
तुम क्या जानो, 
कितने सपने आँख सजाए बैठे थे,
सोचा था अदरक की चाय में प्यार मिला कर दे देंगे,
और किसी नमकीन में अपनी हार मिला कर दे देंगे,
तुम क्या जानो ,
हम कितने आभार सजाये बैठे थे,
कल से तेरी राहों में हम दिए जलाये बैठे थे।

आँखें पूरी रात ना सोई हाँथों ने ये ठाना था,
रोक ही लेंगे राह तुम्हारी तुम जो कहोगे जाना था,
सीने से लग जाएगा दिल, और दरिया बह जाएगा,
जब मस्तक तेरे अधरों की मोहर स्वयं पर पायेगा,
तुम क्या जानो ,
हम कितने अरमान सजाये बैठे थे,
कल से तेरी राहों में हम दिए जलाये बैठे थे।

सोचा था एक पल को पर शायद जीवन मिल जाएगा,
तुझमे खो कर जीने का शायद मकसद मिल जाएगा,
पर दो पल में देखो मेरी सारी दुनिया पलट गयी,
जीवन को जो ढूंढ रही थी महाकाल संग भटक गयी।
तुम क्या जानो,
हम तुमको वरदान बनाये बैठे थे ,
कल से तेरी राहों में हम दिए जलाये बैठे थे।

मूक हो गयी भावनाएं सब, मौन हुयी सारी खुशियाँ,
होंठों ने मुस्काना छोड़ा , रो रो लाल हुयी  अँखियाँ,
पर इसमे कोई भूल ना तेरी , सब मेरी ही गलती है,
एक तरफ़ा हो प्रेम जहाँ वहां कष्ट लताएं फलती हैं,
तुम क्या जानो ,
तुमको हम भगवान्  बनाये बैठे थे,
कल से तेरी राहों में हम दिए जलाये बैठे थे।








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