मन की पीढ़ा को मन में ही रह जाने दो
सखी मत पूछो कुछ तुम मुझको मुस्काने दो ।
रह रह कर विकल हुआ करता है मन मेरा
रह रह कर भाव अधर पर भी आ जाते हैं
रह रह कर माँ की गोद बुलाती है हमको
रह रह बाबा के अंतिम वचन सताते हैं
भैया का लाड़ और बहनो का स्नेह सकल
कर याद मुझे फिर हर दुःख तुम बिसराने दो
सखी मत पूछो कुछ तुम मुझको मुस्काने दो
मन की पीढ़ा को मन में ही रह जाने दो
मैं ऊंची पैंग बढा करके छु लेती थी आकाश नया
मैं बंद पलक कर बुनती थी सपनो का माया जाल नया
मैं उत्सृनखल नदिया सी थी जो पत्थर तोड़ निकलती थी
रास्ते बना लेती थी खुद और लक्ष्य भेद ही रूकती थी
सत्यम शिवम् सुन्दरम का जब जाप ह्रदय कर उठता था
वो जीवन के अद्भुद अमोल पल तुम मुझको याद आने दो
सखी मत पूछो कुछ तुम मुझको मुस्काने दो
मन की पीढ़ा को मन में ही रह जाने दो
है मुझको ये मालूम तुम्हारे सम्मुख आ
मैं नयनों की गंगा प्लावित कर जाऊंगी
मैं भीष्म सरीखी एक शैय्या पर लेटी हूँ
उससे जन्मे सब ज़ख्म तुम्हे दिखलाऊँगी
बस इसीलिए हूँ मौन ,नहीं कुछ कहती हूँ
मुझको अपने प्रश्नों से तुम बच जाने दो।
सखी मत पूछो कुछ तुम मुझको मुस्काने दो
मन की पीढ़ा को मन में ही रह जाने दो ।

आपकी लेखनी को सलाम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
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