फिर वही सुबह
फिर वही आरोप प्रत्यारोप
क्यों नहीं बताया
की आज
विश्राम दिवस है तुम्हारा
क्या सब अपनी मर्ज़ी से ही
करने का इरादा है तुम्हारा
और तो और
बुला ली सखी सहेलियां
तान ली चादरें
बना ली अपने और उनके लिए
पकौड़ियां
Tv पर अपनी मर्ज़ी का
चेनल भी लगा लिया
पूरे घर को
अपने कब्जे में जमा लिया
लगता है पहले से सोच लिया था
जो मन आएगा कर लोगी
बिना मुझे पूछे
सहेलियों से अपना घर भर लोगी।
मुझे बताना
आवश्यक नहीं था
मेरी ज़रूरतों का कोई भी
मानक नहीं था।
कल से मैं भी परेशान था
एक दिन घर मे रुक जाने का
मेरा भी आज का ही प्लान था।
रोज़ आफिस
जा जा के
थक जाता हूँ
बॉस की बड़ी जी हुज़ूरी करता हूँ
तब कहीं एक छुट्टी पाता हूँ।
तुम्हारा क्या है
कभी भी छुट्टी ले लेना,
और अगर आज ही ज़रूरी है
तो प्रोग्राम
अपनी किसी दोस्त के वहां रख लेना।
वो स्तब्ध
अपलक देखे जा रही थी,
पुरुष के अनावश्यक लिए अधिकार को
और सुन रही थी
ताने और यादकदा घटी कुछ बातें।
अरे अरे अरे
कहाँ की बात कहाँ जोड़ रहे हो
एक छुट्टी को किन किन
और बातों से जोड़ रहे हो,
365 दिनों में ये मेरी तीसरी छुट्टी है
पहली जब बड़ा बेटा बीमार पड़ा था
और जब तुम्हे आफिस के काम से
अमेरिका जाना पड़ा था।
याद है वो दिसम्बर जब ठंड ने तुम्हे जकड़ा था
तब तुम्हे संभालने के लिए
मैंने छुट्टी का ही हाँथ पकड़ा था।
हाँ ये मेरी तीसरी छुट्टी है,
हाँ ले ली है मैने ये छुट्टी
बिना तुमसे पुछे,
बिना तुम्हे बताए
पर क्या तुम्हें याद हैं
मेरे शरीर के वो दर्द
जो पिछले कुछ महीनों और हफ्तों में
मैने तुम्हे बताए।
भूल गए ना?
भूल ही गए होंगे
छोटी सी ही तो बात है
शायद इसलिए
की मेरे उस दर्द में भी
तुम्हे तुम्हारे मन की
सब्जी रोटी का साथ है।
हाँ भूल गयी मैं
तुम्हे बताना की कल रात भी
सो नहीं पाई थी मैं
सोनू की पढ़ाई, मोनू की ढिठाई,
टीचर की शिकायतें
और वो जो 500 का नोट गायब था ना
उसको भी अभी तक ढूंढ नहीं पाई थी मैं।
तुम्हारी शर्ट वे लगा वो पेन का दाग
जिसे साफ करना था
अम्मा जी की सारी को भी
अच्छे से कलफ करना था,
पापा जी कल ही बोल के गए थे
बिजली का बिल जमा कर देना
और मेरे आफिस का चपरासी कह रहा था
दीदी ज़रा मेरे बच्चे को भी पढ़ा देंना
इन्ही बातों में उलझी
भूल गयी थी तुम्हे बताना
की बड़ी मुश्किल से
बॉस को मेडिकल लगा के
मैने ये एक दिन अपने लिए था निकाला।
खैर मैं कभी और छुट्टी ले लूंगी
कल तुम आराम कर लो
पर अगर तुम मुझे कल बता देते
किसी बात में भी
आज की छुट्टी का जता देते
तो शायद
मैं आज की भी छुट्टी नही लेती।
हाँ एक शिकायती अर्जी
वो भगवान की पेटी है ना
जो शिव जी के मंदिर में रखी है
उसमें ज़रूर डाल देती
थक गई हूं मैं
रोज़ रोज़ के
इन आरोपों प्रत्यारोपों से,
और मांग रही हूँ तुमसे
एक दिन की छुट्टी
मिलेगी क्या ज़िन्दगी
मुझे एक दिन की छुट्टी तुमसे।

सोचने पर मजबूर करती है यह रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मित्र। कृपया अपना नाम अवश्य लिखें।
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