मैं धरातल पर रहूँगी
तुम गगन में पंख खोलो....
कोई तो हो जो तुम्हें अपलक निहारे
देख कर उड़ता हुआ तुमको
हिलाये हाथ, नीचे से पुकारे
कोई हो जो दे तुम्हें उत्साह
उड़ने का गगन में
और नीचे बैठ कर देखे तुम्हें पूरी लगन से
और कहे पर और खोलो
मैं धरातल पर रहूँगी
तुम गगन में पंख खोलो....
है बहुत आसान उड़ना छोड़ धरती
जानती हूँ मैं सदा से
किंतु फ़िर भी बाँध रखती हूँ
स्वयं को इस धरा से
मैं अकेले बादलों के पार जा सकती हूँ लेकिन
चाहती हूँ 'आओ मेरे साथ उड़ने'
वाक्य यह मेरे लिए अब तुम ही बोलो
मैं धरातल पर रहूँगी
तुम गगन में पंख खोलो....
जानती हूँ मैं महत्वाकांक्षाएं
जो तुम्हें फ़िर लौट कर आने न देंगी
हैं जहाँ बसते तुम्हारे प्राण प्रिय यह
वो धरा तुमको कभी पाने न देंगी
सिर्फ़ मैं ही एक कड़ी हूँ
जिसकी खातिर लौट आओगे
प्रिये यह सत्य खोलो
मैं धरातल पर रहूँगी
तुम गगन में पंख खोलो....

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