मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 11 जून 2022

और तू मुझे विशेष प्रिये

 


जीवन के इस अर्धशतक में

जो अब हिस्से शेष प्रिये

सोचा था एक एक पल होगा

प्रेम सिक्त अधिशेष प्रिये!! 


जब तुम प्रथम सामने आये 

जैसे सुध बुध भूली थी

पाकर तुमको मन ही मन में 

देव ख़ुशी से फूली थी

छिप कर तुम्हें निहारा था तब

मित्रों बीच सराहा था

उसी दिवस की भाँति श्याम फिर

उस किवाड के पीछे से

मैं तुमको प्रिय फिर देखूंगी

छिप कर के निर्निमेष प्रिये!! 


जीवन के इस अर्धशतक में

........... प्रेम सिक्त अधिशेष प्रिये!! 


पायल कंगन करधन अपनी

सब उतार रख आई थी

शोर मचा ना दें ये सब मिल

सोच सोच घबराई थी

अब आंगन भी अपना ही है

छत भी नहीं पराई है

लोक लाज की कोई फ़िकर ना

कब की ये, कुडमायी है

फिर भी मन में  एक लालसा

धरूं पुनः वह भेष प्रिये


जीवन के इस अर्धशतक में

........... प्रेम सिक्त अधिशेष प्रिये!! 


वो भी एक पल था प्रिय जब मैं

हर गोपी से डरती थी

सूने पनघट पर जा जा कर

अपनी गागर भरती थी

खोने का भय ऊंचायी पर

'ना पाने का' डर भारी

जब तक था प्रिय तब तक मैंने

हर जीती बाजी हारी

अब तुझमें मैं दिख जाती हूँ

और तू मुझे विशेष प्रिये


जीवन के इस अर्धशतक में

........... प्रेम सिक्त अधिशेष प्रिये!! 

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