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स्नेह का परिमाप कितना है बताओ
और मन का क्षेत्रफल कितना घिरेगा
कुछ बचेगा क्या स्वयं के वास्ते भी
या सकल अस्तित्व प्रिय पर मर मिटेगा....
क्या बराबर चिन्ह के दोनों तरफ़ की
वेदना संवेदना एक सी रहेगी
क्या हमारे प्रेम की परिणाम मात्रा
चक्र वृद्धि ब्याज़ के जैसे बढ़ेगी
तुम बताओ लाभ हानि का गणित कर
है मुनाफा या हमें घाटा मिलेगा
कुछ बचेगा क्या स्वयं के वास्ते भी
या सकल अस्तित्व प्रिय पर मर मिटेगा....
क्या कभी वो बिंदु तज अपनी परिधि को
केंद्र पर मिलने की ख़ातिर आ सकेगा
क्या कभी गणितीय सूत्रों को लगा कर
दूरियों को वो सभी सिमटा सकेगा
तुम बताओ है कोई ऐसा समुच्चय
जो हमें एक संघ सम मिलवा सकेगा
कुछ बचेगा क्या स्वयं के वास्ते भी
या सकल अस्तित्व प्रिय पर मर मिटेगा....
क्या कभी उनका हृदय भी ढूंढ लेगा
प्रेम के पन्ने पे लिखे सूत्र सारे
क्या कभी भी सिद्ध होंगी वो प्रमेयें
जिनको करने में सभी विद्वान हारे
तुम बताओ प्रेम के कम्पास पर रख
भाव की पेंसिल से कुछ भी बन सकेगा
कुछ बचेगा क्या स्वयं के वास्ते भी
या सकल अस्तित्व प्रिय पर मर मिटेगा....
छोड़ दें गर सब गणित, दो पक्ष भी विपरीत कर दें
हम सकल स्थान खाली कुछ ग़लत मानों से भर दें
जोड़ दें अपने सकल सुख, कष्ट सब उनके घटा दें
और इन राहों पे चलने में, स्वयं को ही मिटा दें
तुम बताओ इस तरह का अवकलन क्या हो सकेगा
कुछ बचेगा क्या स्वयं के वास्ते भी
या सकल अस्तित्व प्रिय पर मर मिटेगा....
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स्वधा रवींद्र उत्कर्षिता

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