मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 25 जून 2022

कभी मुझको रुलाता है!!


 



मुझे घर का मेरे सामान, तुम तक लेके आता है

कभी मुस्कान देता है, कभी मुझको रुलाता है!! 


घड़ी जब देखती हूँ मैं टंगी दीवार पर है जो

कभी बारह पे अटका मन, कभी बस छह बजाता है!! 


मुकर्रर वक़्त दो ही थे मिलन के और जुदाई के

ख्यालों में अभी भी तू, समय पर आ ही जाता है!! 


निवाला अब भी तब जाता है मेरे हलक से नीचे

तू साढ़े तीन पर जब अपना खाना खा के आता है!! 


मैं रो पड़ती हूँ अब भी उस जगह पर अपने कमरे में

जहाँ पर बैठ कर मन तेरे लिखे गीत गाता है!! 


तुझे मालूम  है किस हाल में है जिंदगी मेरी

तेरा यूँ छोड़ कर जाना मुझे कितना सताता है!! 


मेरे स्क्रीन पर अब भी तेरी तस्वीर रहती है, 

मेरा मोबाइल तेरी कॉल पर सब भूल जाता है!! 


नहीं होकर भी मेरे साथ में वो इस तरह से है, 

मैं देखूँ आईना तो अक्स बन कर झिलमिलाता है!! 


कभी थामा था तेरा हाथ हमने अपने हाथों में

बिछड़ कर तुमसे मेरा हाथ अब तक कंपकंपाता है!! 


अगर तुम नाम में अपने किशन लिखते हो तो सुन लो

किशन वो है जो राधा को कभी ना छोड़ जाता है!! 


स्वधा का अर्थ है खुद में स्वयं को धार कर रखना

मगर अब ख़ुद में भी देखूँ, नज़र बस तू ही आता है।। 



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