मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 23 जून 2022

दाँव पर फ़िर दाँव



दाँव पर फ़िर दाँव पर फ़िर दाँव पर फ़िर दाँव 

कंटकों पर पाँव पर फ़िर पाँव पर फ़िर पाँव!! 


धूप में जलता रहा माली सदा ही, और जग के 

सर रही बस छाँव पर फ़िर छाँव पर फ़िर छाँव!! 


बढ़ रहा है क्षेत्रफल परिमाप अब शहरीकरण का

घट रहे हैं गाँव पर फ़िर गाँव पर फ़िर गाँव!! 


भीड़ है हर ओर, चलते और ठहरे लोग लेकिन

अब नहीं है ठाँव पर फ़िर ठाँव पर फ़िर ठाँव!! 


लोग अब जब बोलते हैं प्रेम के स्थान पर गिरती है

केवल आँव पर फिर आँव पर फ़िर आँव!! 


देखने में लग रहे थे कोकिला कोयल सरीखे जो गले वो

कर रहे हैं काँव पर फ़िर काँव पर फ़िर काँव!! 


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