पनघट पर जा राधा रानी, श्याम की बाँट निहार रही हैं,
सर पर मटकी, मटकी पे मटकी, मटकी पे मटकी संभाल रही हैं,
जाने कहाँ हैं छिपे गिरधारी, वो वन उपवन मे पुकार रही हैं
मन की किवड़िया न खोलें लली बस, बाहर कृष्ण गुहार रही हैं।।
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छोड़ के मोहन जब से गए, सुध बुध खो बईठी है होके दीवानी,
साज सिंगार न भावे लली को, बहे बस दुइनन आँख ते पानी,
टेर रही बस एक ही राग, मुरारी मुरारी मुरारी मुरारी
या तो हमें अब मुक्त करो हरि, या फिर हिस्से में दो गिरिधारी।।

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