मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

गणपति वंदना



हे विघ्न विनाशक एकदंत
तुम आज पाप का करो अंत
तेरे मस्तक पर साज रहे
नक्षत्र सूर्य और कोटि चंद्र

लंबोदर यह भी ध्यान रखो
भरने हैं तुम्हे उदर लाखों
एक बार त्याग कैलाश 
माई की गोद इधर भी तुम झाँको
सुरभित कर दो ये सकल सृष्टि
वृष्टि से इसे बचा लेना
हे गणपति आँगन में मेरे
तुम अनगिन कुसुम खिला देना
तुम रिद्धि सिद्धि के पोषक हो

जग से हरना सारे प्रपंच

हे विघ्न विनाशक एकदंत
तुम आज पाप का करो अंत।

हे विघ्नहरण हे सदानंद
जीवन के विघ्न हरो सारे
हे महादेव सुत भक्तों के
आकर संताप हरो सारे
बच्चों को दो नव संस्कार
माँ और पिता का मान करें
गुरु की सेवा में रत हों नित
सबका हर पल सम्मान करें
सबको वह शक्ति प्रदान करो
देखे तो जग रह जाये दंग

हे विघ्न विनाशक एकदंत
तुम आज पाप का करो अंत।

कुर्सी पर बैठें लोगों को
सिद्धांत महामानव से दो
सब द्वेष कलुषता हर लो प्रभु
मानवता का विकास भी दो
हर अबला को सबला करके
तुम शक्ति सरीखा कर देना
लेखनियों में भी अग्नि सजा
तुम धर्म युध्द को बल देना 
हे चंद्रभाल धारण करने वाले 
कर दो इतना प्रबंध

हे विघ्न विनाशक एकदंत
तुम आज पाप का करो अंत।

तुम आज पधारे हो घर में
आये हो तो यह काम करो
तुम घर आँगन के साथ 
हमारे मन मंदिर  वास करो
आशीष शीश पर कर रख कर
तुम सबको नित्य प्रदान करो
अपनी समस्त शक्तियों से
तुम इस जग का उत्थान करो
इतना सार्थक कर दो जीवन
बच्चे हम पर लिख दें निबंध

हे विघ्न विनाशक एकदंत
तुम आज पाप का करो अंत।




स्वधा रवींद्र"उत्कर्षिता"


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