मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

गीत :- फकीरी



ढूंढ लिया सारा जग मैने 
राम नहीं मिल पाया
अँखियाँ करीं बंद जब मैंने, 
मन मन बीच लगाया
राम नज़र तब आया मुझको 
राम नज़र तब आया।

लागी रे फकीरी मुझे ऐसी पिया
तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया।

नदिया बीच अटक गयी नैया
भंवर समझ ना आया
जग में रह कर जग की हो गयी
खुद को कभी न पाया
कहना था जब भी कभी
होंठो को सिया

तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया
लागी रे फकीरी मुझे ऐसी पिया
तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया।

मटकी लेकर आई जब जब
मैं गंगा के तीरे
भूल गयी माटी का मटका
उतरी उसमें धीरे
पाप पुण्य की गठरी छोड़ी
केवल प्रेम जिया

तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया
लागी रे फकीरी मुझे ऐसी पिया
तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया।

नंगे पैरों निकल पड़ी मैं
अनजानी राहों पर
ओढ़ी नहीं चुनरिया मैने
नाहिं ढका अपना सर
कहाँ बची अब जग की चिंता
जब विषपान  किया

तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया
लागी रे फकीरी मुझे ऐसी पिया
तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया।

टेर रही थी नाम तुम्हारा
भटक रही राहों पर
अक्षर बन गए शब्द हमारे
उतर गए वो अधर पर
जाते जाते इस दुनिया से
तेरा नाम लिया

तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया
लागी रे फकीरी मुझे ऐसी पिया
तुझपे मरी मैं सैयां तुझको जिया।





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