देखो रंग भरा चहुं ओर
भागे गीली अली
रस बरसे आज चहुं ओर
भागे पीली अली।
श्याम विछोह में व्याकुल है ये
अँखिनयन जल ले आकुल है ये
भीगी अपने नयनजल आज
लागे सीली अली।
मोहन मोहन टेर रही है
माला नाम की फेर रही है
मिल गए जब नंद के लाल
लागे जी ली अली।
अंग अंग को श्याम किया है
मन को भी निष्काम किया है
पिया जब विछोह का माहुर
लागे नीली अली।
मन पिंजर से बंधा हुआ था
जीवन मे भी रमा हुआ था
मिटा भ्रम का मायाजाल
पी से मिल ली अली।
देखो रंग भरा चहुं ओर
भागे गीली अली
रस बरसे आज चहुं ओर
भागे पीली अली।
स्वध

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