ध्यान मार्ग पर चलने से ही ,ज्ञान प्राप्त होता है
छाता है उजास तब मन मे, अंधकार खोता है
सुख की नदियां बह उठती है, अँखियाँ दुख खोती है
जब सारे चक्रों की ऊर्जा, ऊर्ध्वाधर होती है
ज्ञान उदित जब हो जाता है, अज्ञानी रोता है,
ध्यान मार्ग पर चलने से ही ,ज्ञान प्राप्त होता है।
नश्वर है शरीर और शाश्वत ईश बसा जो उसमें
पवित्रता आनंद खुशी सुख का सागर है उसमें
फिर भी भौतिकता का आदी क्यों कर तू होता है
ध्यान मार्ग पर चलने से ही ,ज्ञान प्राप्त होता है।
स्वयं उजाला बन जाते जो भक्ति मार्ग चलते हैं
अंशुमान सी किरण बिखेरे त्रास सभी हरते हैं
जान रहा सब सत्य प्रकृति का क्यों कर तू सोता है
ध्यान मार्ग पर चलने से ही ,ज्ञान प्राप्त होता है।
जाग गई कुंडलिनी तेरी सत्य समझ जाएगा
तू ही धर्म क्षेत्र है तुझमें ही गीता पायेगा
मार्ग चुने जो स्वांस साध कर वो प्रभुमय होता है
ध्यान मार्ग पर चलने से ही ,ज्ञान प्राप्त होता है।
स्वधा रवींद्र "उत्कर्षिता"

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