मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

गीत:- होठों पे मौन सजाए है


नैनों में भँवर, होंठों पे सदा, 
मन मे कुछ राज़ छुपाए है
जो कल तक बोला करती थी, 
होठों पे मौन सजाए है।

आयी थी जब वो प्रथम सामने 
मन मेरा मुस्काया था
अपनी चंचल चितवन से उसने 
मुझको यूँ भरमाया था
जो कल तक अल्हड़ नदिया थी 
वो चिर विश्राम निभाये है,

नैनों में भँवर, होंठों पे सदा, 
मन मे कुछ राज़ छुपाए है
जो कल तक बोला करती थी, 
होठों पे मौन सजाए है।

चेहरे पे कई लकीरें है 
अनुभव के लाखों रंग लिए
वो पलकें खोल देखती है , 
मन मे दुनिया के तंज लिए
मन टूटा है लेकिन फिर भी 
वो एक मुस्कान सजाए है

नैनों में भँवर, होंठों पे सदा, 
मन मे कुछ राज़ छुपाए है
जो कल तक बोला करती थी, 
होठों पे मौन सजाए है।

जाने कितने ही रूपों से 
उसने दुनिया को सरसाया
माँ बहन मित्र बन कर जीवन पर 
अमृत रस भी बरसाया
वो इन्द्रधनुष के रंगों सी बन कर 
हर हृदय लुभाये है

नैनों में भँवर, होंठों पे सदा, 
मन मे कुछ राज़ छुपाए है
जो कल तक बोला करती थी, 
होठों पे मौन सजाए है।

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