क्या लगा तुमको
कि मेरे मार्ग को
अवरुध्द कर दोगे
तो रुक जाऊँगी मैं।।
मैं हलाहल हूँ नहीं
मैं सोम का अनुपम कलश हूँ
मैं नहीं हूँ झूठ
मैं चिर सत्य की शाश्वत झलक हूँ
क्या लगा तुमको
कि छल कर तुम मुझे फिर क्षुब्ध कर दोगे
तो चुक जाऊंगी मैं,
क्या लगा तुमको
कि मेरे मार्ग को
अवरुध्द कर दोगे
तो रुक जाऊँगी मैं।।
मैं पहाड़ी वो नदी हूँ
बांध से जो बंध न पाई
मैं मरुस्थल की तपिश जो
प्यास से भी थम न पाई
क्या लगा तुमको
कि तुम मुझको दिखा हठ युद्ध कर दोगे
तो झुक जाऊँगी मैं।
क्या लगा तुमको
कि मेरे मार्ग को अवरुध्द कर दोगे
तो रुक जाऊँगी मैं।।
झूठ से अवगत करा कर
सत्य उसको गर कहोगे
द्वेष को आकंठ भर कर
प्रेम की भाषा गहोगे
क्या लगा तुमको
कि तुम खुद को अगर जो कृष्ण कर दोगे
तो दुख जाऊंगी मैं
क्या लगा तुमको
कि मेरे मार्ग को अवरुध्द कर दोगे
तो रुक जाऊँगी मैं।।
त्याग कर सर्वस्व अपना
आज जब मैं चल पड़ी हूँ
मैं जगत हित के लिए
संधान करने को खड़ी हूँ
क्या लगा तुमको
कि अपने क्रोध को अनल कर दोगे
तो फुंक जाऊंगी मैं
क्या लगा तुमको
कि मेरे मार्ग को अवरुध्द कर दोगे
तो रुक जाऊँगी मैं।।

beautiful
जवाब देंहटाएंBahut bahut abhaar
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